A Review Of bhairav kavach
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ज्वलत्पावकमध्यस्थो भस्मशय्याव्यवस्थितः ॥ ९॥
॥ ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीम् ॥
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पातु मां बटुकोदेवो भैरवः सर्वकर्मसु।।
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इह लोके महारोगी दारिद्र्येणातिपीडितः ॥ २९॥
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्डभैरवः ।
आपदुद्धारणायेति त्वापदुद्धारणं नृणाम् ।
जलमध्येऽग्निमध्ये वा दुर्ग्रहे शत्रुसङ्कटे ॥ २४॥
आयुर्विद्या यशो धर्मं बलं चैव न संशयः ।
भीषणो भैरवः पातु उत्तरस्यां तु सर्वदा ।
asya vaṭukabhairavakavacasya mahākāla r̥ṣiranuṣṭupchandaḥ śrīvaṭukabhairavō dēvatā baṁ bījaṁ hrīṁ śaktirāpaduddhāraṇāyēti kīlakaṁ mama sarvābhīṣṭasiddhyarthē viniyōgaḥ
वामपार्श्वे समानीय शोभितां वर कामिनीम् ।।